महामारी के बाद एक समावेशी, नए भारत के निर्माण में साझेदारी की भूमिका

Source: Ticking time bomb: The perilous lives of garment workers amid the pandemic (Hindi Translation)

भारत में तीन मिलियन से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGO) हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं और सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक, मुख्य स्रोत या भागीदार की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

NGOs गरीबी उन्मूलन, जल, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकार और साक्षरता से संबंधित मुद्दों जैसे कामों में तेजी लाने पर भी ध्यान देते हैं। पिछले दशकों में उन क्षेत्रों में देखने योग्य विकास हुए हैं जहां NGOs सक्रिय रहे हैं। वे लगभग सभी क्षेत्रों में बढ़िया काम किए हैं: स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आजीविका आदि कुछ नाम हैं।

NGOs की एक और बड़ी उपलब्धि में विभिन्न विकास संबंधी कानूनों और नीतियों को तैयार करने के लिए भारत सरकार को प्रभावित करना शामिल है, जिसमें सूचना का अधिकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा), किशोर न्याय और एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) शामिल हैं। स्वच्छ भारत अभियान और सर्व शिक्षा अभियान जैसे प्रमुख अभियानों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए NGOs ने भी सरकार के साथ भागीदारी की।

विकास के लिए कई समाधान पेश करके जवाबदेही लेते हुए NGOs हमेशा सबसे आगे रहे हैं। महामारी के दौरान, NGOs ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सरकार की COVID-19 प्रतिक्रिया पहल का पुरे तरीके से समर्थन किया। उनकी जमीनी स्तर पर मौजूदगी और ठोस सामुदायिक संबंधों को देखते हुए, स्थानीय NGOs ने टीकाकरण अभियान में तेजी लाने और समुदायों को COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

कई NGOs ने महामारी की जरूरतों के साथ-साथ सामुदायिक संदर्भ को समझते हुए अपने मौजूदा विकास कार्यक्रमों को बदल दिया। उन्होंने रणनीतियों को उनकी आवश्यकताओं के साथ मेल के लिए उसके अनुरूप बनाया और जिला और राज्य स्तर पर सरकारों का सहयोग किया।

इन सभी कारणों ने सरकारी कार्यक्रमों जो कि ‘एक आकार सभी के लिए उपयुक्त’ प्रक्रिया रखते हैं की तुलना में NGOs को एक विशेष स्थान पर रख दिया है। सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी अधिकारियों को लोगों तक पहुंचने के अपने प्रयासों में NGOs को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया।

अंततः, NGOs ने वहां कदम रखा जहां सरकारें नहीं कर सकती थीं, और ऐसी सेवाएं प्रदान कीं जो सरकारें नहीं कर पातीं। जैसे-जैसे COVID-19 महामारी के प्रभाव सामने आ रहे हैं, अलग-अलग प्रभाव स्पष्ट होते जा रहे हैं।

भले ही हम अभी तक नहीं जानते कि आने वाले वर्षों में महामारी किस तरह से सामने आएगी, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह एक स्वास्थ्य संकट से कहीं अधिक है। इसके प्रभाव और जटिलतााओं के बहुत सारे पहलू हैं और देश के सभी कोनों में समुदायों के लिए व्यापक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण संबंधी चुनौतियाँ पेश करते हैं।

चूंकि COVID-19 के बाद भारत का भविष्य अभी भी अनिश्चित और अस्थिर दिख रहा है, तो आइए मान लें कि समाज की सबसे कमजोर आबादी के लिए NGOs का काम महत्वपूर्ण होगा।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र स्थायी विकास लक्ष्य 2030 के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाई और देश के अधिकांश राष्ट्रीय विकास लक्ष्य यूनिटेड नेशंस-मैंडेटेड स्थायी विकास लक्ष्य प्राप्त करने से जुड़े हैं।

भारत अब SDG सूचकांक में 162 में से 120वें स्थान पर है। सतत विकास लक्ष्य (SDG) 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्धारित 17 परस्पर जुड़े वैश्विक लक्ष्यों को जोड़ते हैं।

महामारी से पहले, SDG को आसानी से अपनाया गया था और राष्ट्र ने उन्हें राष्ट्रीय विकास एजेंडे के साथ जोड़कर उन्हें पूरा करने के लिए भारत ने साहसिक लक्ष्य निर्धारित किए थे।

दुर्भाग्य से, कोविड-19 महामारी की शुरुआत ने स्थिरता में प्रगति को काफी हद तक बाधित कर दिया और योजना के अनुसार SDG को पूरा करने की भारत की यात्रा पटरी से उतर गई। कोविड के बाद के चरण में इस धीमी प्रगति की वजह से कॉर्पोरेट सेक्टर, NGOs और सरकार के बीच सहयोग के माध्यम से तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत है।

महामारी के बीच बेहतर निर्माण के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और NGOs सहित सभी साझेदारों के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) को NGOs को समर्थन देने को महामारी के दौरान SDG हासिल करने के लिए सबसे सही तरीके के रूप में देखा जाता है और भारत इंक को नवीन प्रक्रियाओं को फंड करने के लिए पैसे उपलब्ध कराने वाले के रूप में देखा जाता है।

महामारी ने निगमों को जीवन, आजीविका और पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित किया है। महामारी ने कॉर्पोरेट भारत को प्रासंगिकता, प्रभाव और पैमाने वाले CSR प्रोग्राम्स के माध्यम से वंचितों की मदद करने के लिए प्राथमिकताओं को समझने  फिर से ठीक करने का मौका दिया है।

NGOs को इस अवसर का उपयोग करने और अंतर को मिटाने की जरूरत है। अपने क्षेत्र के अनुभव, सिद्ध विकास मॉडल और CSR भागीदारी से प्राप्त धन के साथ, कोविड के बाद की रिकवरी की राह एक अधिक समावेशी, टिकाऊ और बेहतर भारत का निर्माण करेगी।

COVID-19 के खिलाफ यह लड़ाई एक सहयोगपूर्ण प्रयास रही है। और जिस तरह से सरकारों, कॉरपोरेट्स और गैर-सरकारी संगठनों ने महामारी पर सहयोग दी है, वह साझेदारी की शक्ति को मजबूत करता है।

महामारी हमारे समाज में मौजूद कमियों को समझने के लिए सभी के लिए सीखने का एक चरण रही है। सभी द्वारा किए गए कोशिश देश के नागरिकों के प्रति सामाजिक जिम्मेदारी की सामूहिक जिम्मेदारी का प्रमाण है। महामारी एक चुनौती है और रहेगी और जब तक सभी साझेदार एक साथ नहीं आते तब तक इसका समाधान नहीं किया जा सकता।

भारत 2030 तक SDG के लिए प्रतिबद्ध है और निरंतर विकास और प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए लंबे समय तक की रणनीति स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। हालाँकि, यह ध्यान रखना जरुरी है कि एक लंबे समय तक की रणनीति की सफलता न केवल छोटी या मध्यम अवधि की विकास रणनीतियों को लागू करने से सीखे गए सबक पर निर्भर करती है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों – सरकार, भारत इंक और NGOs से सहयोग और समन्वय पर भी निर्भर करती है।

समाज के सभी स्तरों पर हमारे एजेंडे को दोबारा प्राथमिकता देने के लिए काफी समर्पण, एकजुटता और फंडिंग की आवश्यकता है, क्योंकि यही राष्ट्र को बेहतर बनाने की कुंजी है।

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